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________________ रामायण क्या इसको कुछ हो रहा, जाति स्मरण ज्ञान । या यह रागान्धी हुई, बनी फिरे दुर्ध्यान । कुछ भी हो किन्तु इसका, रङ्ग रूप ही अति निराला है । अवकाश समय सुकर्म, कारीगर ने सांचे में ढाला है। और मात-पिता ने भी इसको क्या लाड-प्यार से पाला है। वर्तमान मे आज अद्वितीय स्त्री रत्न निराला है। रत्नस्रवा बहिर शिकस्त गाना नं. १० यात्रा करके भारत की मैने, चाहे कामिनी हजार देखी। तो गौरव चातुर्य रूप लावण्य, मे इसकी शोभा अपार देखी ।। भंवर से बालों की गूथी चोटी, गजब की पटिये झुका रही है। हेम तारो से गूथी मोतिनसे मांग, दिल को चुरा रही है । हस्तरेखा क्या अंगुली सूक्ष्म हैं, शोमत लक्षण स्वभावे तनपर । गजब का गौहर करे है जौहर है, राज शान्ति का इसके मनपर ॥ मत्स्योदरी बिम्ब अधरी, शशी के सदृश गोल वदना । चम्पक डाली सी बाहो को लख, शर्म खाती है देव अगना।। है मुख पे लाली दमक निराली, जुलफ नागिन सी काली काली। निडाल बिजली सी चमक आगे, फीकी लगती है सब उजाली। कटीले नेत्रो के तेज बेशक, हिरण के चित्त मे खटकते होगे। इस पुण्य तन को देख-देख कई, अपने सिर को पटकते होगे। शेर पुण्य इसने पूर्व भव में, है अतुल कोई किया । जन्म इसमे आनकर, शोभन यह फल इसने लिया । अनेको दर्शक इसकी, चाहना मे भटकते है । समय पूर्व ही मार्ग मे हुए, बेबल शटकते है।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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