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________________ इन्द्र-वंश लंका किष्किन्धा पति राई, लंका पाताल स्थिति बजाई। यही विचारा समय बितावे, प्राप्त अवसर बदला पावे । दोहा अश्वनी वेग सहसार को, दिया राज्य का ताज । दुनिया से दिल विरक्तकर, सारा आत्म काज ॥ रावण-वंश * पाताल लंका वर्णन * दोहा सुकेशी नृप के शिरोमणि, इन्दु मालिनी प्रवीण । माली सुमाली मालवान्, पुत्र जाये तीन । दोहा किष्किन्धा नप दूसरा, श्री माला शुभ नार । ऋक्षरज आदित्यरज, पुत्र दो सुखकार ॥ पुत्र दो सुखकार, मधु पर्वत पर वास बसाया। किष्किन्धा नाम दिया जिसका, नीति से राज चलाया ।। शक्ति का अवलोकन कर, जंगी सामान बनाया । बहतर कला के जानकार दो पुत्र भूप हर्पाया ॥ उधर सहसार नप भारी, चित्त सुन्दरी पटनारी । अनुपम सुत जाया है, इन्द्र दिया तसु नाम तेज इन्द्रवत् कहलाया है ।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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