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________________ इन्द्र-वंश ४३ . दोहा एकत्रित हो सभी ने, किष्किन्धी लिया घेर । गर्ज तर्ज हो सामने बोला ऐसे शेर ।। दोहा हां मुझको भी आ गई, बात पुरानी याद । बनते ही आये सदा, आपके हम दामाद ।। दामाद हमेशा आपके, सब हम बनते ही आये हैं। खैच खडग अब तक तुमने, गीदड़ ही धमकाये है। शस्त्र दिखाते जामतो को, जरा ना शर्माये है। सहर्ष करेगे स्वागत रण का, क्षत्री के जाये है ।। दौड़ जान की साथन माला, मैं हूँ इसका रखवाला। . सन्मुख क्यों नहीं आता, पीठ दिखा या रण मे कायर खाली गाल बजाता ॥ दोहा बात बात मे बढ़ गई, आपस मे तकरार । रण भूमि मे उस समय, बजन लगी तलवार ॥ दोह। (किष्किन्धी का) मैढक सा क्या उछलता, मारू उदर में लात । पूछ बड़ों को जायके, हम तुमरे जामात ।। दोह। मित्र घेरा देखकर, लंकपति भूपाल । जंगी वस्त्र पहिन कर, नेत्र कीने लाल ॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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