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________________ ✓ बालि-वंश मात-पितु की स्नेह दृष्टि शिक्षा गुरुजन की सभी, कर्मोदय सब छिप गई कुकर्म भरमाता मुझे ॥४॥ शुक्ल अब बस फैसला मैने अटल यह कर लिया, चारित्र मोहनी कर्म व जकड़ना चाहता मुझे ||५|| वशीकरण के मन्त्र है, दुनिया में यह चार । रूप, राग और नम्रता, सेवा भली प्रकार || पूर्व जन्म का था सम्बन्ध, कुछ रूप का पारावार नहीं । कुछ रसना मीठी श्रीकंठ की नरमी का कोई पार नही ॥ कुछ प्रेम तमाचे के समान, दुनिया मे लगता सार नहीं । समझो सभी नमूने से, ज्यादा करते विस्तार नही || सब कारण समझे पद्मा ने, व्यवहार नहीं अब सधने का जो दिल मे प्रेम बढ़ा बैठी, अब प्रेम नहीं वह हटने का || बिना मुझे इस रस्ते से कोई मार्ग आता नजर नही । संयोग है पिछले जन्मो का निश्चय, है इसमे कसर नहीं ॥ दोहा ऊंच नीच सब सोच कर, बैठी तुरत विमान । श्रीकंठ मन सोचता, बना सब तरह काम || 7 दोहा यह पुष्पोत्तर की सुता, पद्मा रूप अपार । पुण्योदय से मिल गई, इन्द्राणी अवतार ॥ इन्द्राणी अवतार कि जिसका, मिलना अति कठिन है । याचन से देता नहीं भूप का, हमसे उल्टा मन है | किन्तु मानव के आगे, यह कौन क्रिया दुष्कर है। होगा जो देखा जावेगा, अब करो काम जो दिल है || ३३
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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