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________________ रामायण arrary Wr देख मुखपर दमकता, दिलमे हुआ ऐसा विचार। इस-पुण्य तनके सामने, दोनो का तन काला हुआ। शीलालज्जा भोलापन, क्या गुण सर्व लक्षण अति । चमन और संध्या से जिसका, रूप दो वाला हुआ। किस तरह संयोग अब, इस पुण्य तन से हो मेरा । पूर्ण हो आशा तो मै भी, शुभ कर्म वाला हुआ । दोहा मन ही मन मे इस तरह, करता रहा विचार । सेवक जन लख आकृति, बोले गिरा उचार ।। स्वामिन् क्यो सहसा हुआ, चेहरा आज उदास । किस कारण लेने लगे, लम्बे लम्बे स्वांस ।। है प्रकृति अनुकूल सभी के, शोक मोचनी बनी हुई। संध्या भी अपना गौरव लेकर, सभी ओर से तनी हुई। वायु कुमार ने मरुत की शोभा, शीतल कैसी रची हुई। जिसको लेकर ना चलती पवन, व सुगन्ध कौनसी बची हुई ।। गाना नं ३ मेरे इस मर्ज की, तुम्हें क्या खबर है । यह दौरा मुझे सहसा, आया जबर है ॥ यदि घर चला तो, यह दूनी बढ़ेगी। मुझे आता निश्चय ही, ऐसा नजर है॥ इसी राजधानी मे, ठहरेगे कुछ दिन। मेरे मर्ज की बस, मुझे ही फिकर है ॥ सिवा एक के वाकी, “जावो” 'भिदापुर' । मिटेगी यह कुछ दिन, मे जो भी कसर है।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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