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________________ शिष्य-प्रश्न .mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwwwwrammarrrrrrr 'अब सुनो एकाग्र चित्त करके, कुछ काल विभाग बताते है। जिस जिस क्रमसे जिस जिस गुण से, जैसे अवतार कहाते है। दश क्रोडाकोड़ सागर का, अब काल यह अवसर्पणि है। उत सपेणि दस का बीत गया, आगे भी उतसपेरिण है॥ दोहा प्रतिसर्पणि मे हुए, होगे है अवतार । त्रिषष्ठी प्रतिकाल मे समझो गणितानुसार ।। धर्मा अवतार हुए चौबीस, अब है आगे को होवेगे। सब तारन तरण जहाज आगामी कर्ममैल को धोवेगे। बारा भोगावतार हुये, इसमे आगे होगे बारा । निग्रन्थ बने सो मोक्ष लहे नहीं बास अधोगति मंझारा ॥ दोहा कर्मावतार होते सभी सम्मुख बचे जो शेष । चरणन करते है सभी, जो जो फरक विशेष ।। उक्त काल के हिस्सो मे. नौ नौ बलदेव कहाते है। यह उत्तम प्राणी त्यागशील से, स्वर्ग अपवर्ग पाते है ।। अनुज भ्रात इनके ही क्रम से, वासुदेव कहलाते है । अपर नाम नारायण जो, दुनियां से नहीं दहलाते हैं। सग्राम मे इनसे बढ़ करके, दुनियां में नहीं कोई शूरा है । क्योकि इनका पिछला बांधा, होता नहीं पुण्य अधूरा है ।। पूर्व पुण्य शुभ भोग यहाँ, यहाँ का आगे जा पाते है। चलि के द्वारे के अतिरिक्त, ना और कहीं पर जाते है । इन अष्टादश के पूर्वजात, नौ प्रति नारायण होते है। प्रति वासुदेव, कह दो चाहे, अवसान मे सर्वस्व खोते है ।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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