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________________ ३६८ रामायण दोहा लटक रहा था शीश जो, शबूक का दरम्यान । वंश जाल के संग कटा पड़ा सामने आन | देख भयानक दृश्य अनुज के, चोट हृदय पर आई है । क्योकि यह निरपराधी कोई, मुझसे मरा वृथा ही है || किया खेद प्रति लक्ष्मण ने फिर आगे पैर बढ़ाया है । शीश कटा धड़ लटक रहा, यह नजर सामने आया है । गाना नं० ५२ 1 ( शंबूक की मृत्यु पर लक्ष्मण का दुःख करना ) सैर करते आज मेरा, यहां क्यो आना होगया । ' बेगुनाह इस मनुष्य का, परभव में जाना होगया || १ || कष्ट सह सह करके जिसने, था खड्ड साधन किया । हाय किस परिवार का हृदय जलाना होगया || २ || देख वह रो रो मरेंगे, जिनका राजकुमार है । क्योकि उनका आज यह अनमोल दाना खोगया || ३ || अब तो कुछ बनता नहीं, चाहे यत्न लाखों करूँ । जीव इसका तो शुक्ल, परभव रवाना होगया ||४|| दोहा पछताता ऐसे अनुज, गया राम के पास । खड्ग सामने धर दिया, चेहरा प्रति उदास || बाले राम हो भाई, चेहरे पर अति उदासी क्यो । यह खड्ड कहां से लाये हो, और ठंडी लई उवासी क्यों | कहे अनुज महाराज आज मै, कौचरवा के तीर गया । निरपराधी विद्या साधक, मारा एक रणधीर गया ||
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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