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________________ ३६० रामायण rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr छन्द (स्कन्धक ) क्या सभी अभव्य है, मुनि पांचसौ मारे गये। हृदय सभी के पत्थर है, क्या वज्र के ढाले हुये ।। अच्छा जो मै जप तप किया, उसका मुझे यह फल मिले । नाश मै इनका करू, और तोड़ डालू सब किले ।। बेच दी करणी सभी, खंदक ने नियाना कर दिया । दुष्ट पालक ने मुनि, घानी मे उस दम धर दिया । श्वास पूरे हो गयें गुस्से के, बस विराधक हुआ। साधक हुआ संसार का, और मोक्ष का बाधक हुआ ।। दोहा (सुगुप्त) स्कन्धक जाकर देवता, हो गया अग्नि कुमार। इधर मांस ले व्योम में, पक्षी उड़े अपार ॥ जिसको जो कुछ मिला वही, पक्षी वहाँ से ले दौड़ा है। लालच के वश कोई ले गया, ज्यादा और कोई थोड़ा है। टुड़ा एक रत्न कंबल का, रजोहरण जिसमे लिपटी । खून मांस का भरा हुआ, एक चील उसी को आ चिपटी। लेकर उडी वहां से बैठी, राजमहल ऊँचे जाकर । लगी जिस समय वान मिला, नही सार पड़ा नीचे आकर । जब देखा इसे महारानी ने तो, रजोहरण कम्बल पाया। पुरन्द्र यशा मन घबराई, झट भूप महल में बुलवाया । दोहा (पुरन्द्र यशा) प्राणनाथ यह देखिये, कंपा कलेजा आज । क्या कोई मारा गया, बाग बीच मुनिराज ।।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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