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________________ (१२) श्री अरिष्ट नेमि जी के पीछे और श्री पार्श्वनाथ जी के पहले अन्तर मे चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त हुआ। यह ब्रह्म राजा व रानी चूल देवी का पुत्रं था। यह विषय भोगों में फंसा रहा । अन्त मे सर कर सातवे नरक में गया। कर्मावतार अर्धचक्री नारायण वासुदेव पद की प्राप्ति होने पर इन्हे सात रत्न प्राप्त होते है। वे निम्न है । १ सुदर्शन चक्र २ अमोघ शंख ३ कौमुदी गदा ४ पुष्प माला ५ धनुष्य अमोघ बाण ६ कौस्तुभमणि ७ महारथ ये फलवान और महा सुन्दर होते है। इनकी ऋद्धि व सिद्धि चक्रवर्ती से आधी होती है। इति शम्
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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