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________________ ३३६ रामायण कुछ पल्ली पति और उदित कुवर का, पूर्व हाल सुनाया है ।। जमीदार था जीव उदित का, पल्लि पति वहाँ पक्षी था । छुड़वाया लुब्धक से जो, इसके भक्षक का आकांक्षी था ॥ पक्षी पल्लि पति आन हुआ, अनमोल मनुष्य तन पाया है । और जैसी संगति मिले बने, वैसा ही मन वच काया है ॥ वह कृपक जन्सा उदित श्रन, और मुदित दूसरा भाई है । इस कारण श्रण गारो की, पल्लि पति ने जान बचाई है || उदित मुदित ने तप संयम को, आराध किया संथारा है । महा शुक्र मे जा देव हुए, सुर करते जय जय कारा है ॥ जन्मान्तर से वसुभूति भी, नरतन को धार आ तापस । अज्ञान कष्ट जिन किया बहुत तन मे था भरा हुआ तामस || मिथ्या मति का था भरमाया, संसार बंधन का हेतु है । वह उपना ज्योतिष्य चकर मे, जा देव धूमवर केतु है । 3 www दोहा ( कुल भूषण ) अरिष्ट पुरी नगरी भली, प्रियनन्दी भूपाल । पटरानी पद्मावती, सुन्दर रूप रसाल ॥ NAM उदित मुदित ने महाशुक्र तज, पद्मावती के जन्म लिया । जहाँ राज पाट सुख न मिला, पूर्व शोभन था कर्म किया ॥ श्री रत्नरथ और चित्ररथ, दोनों का नाम कहाया है । छोटी रानी के उदर धूमकेतु, ने जन्म आ पाया है || रखता था, विरोध निज भाइयो से, और अनुधर नाम कहाया है । रत्नरथ को ताज ढ़े नृप ने, संयम ध्यान लगाया है ॥ तप जप निर्मल कर राजऋपिने, उच्च देव पढ़ पाया है । अव सुन लीजे दशरथ नंदन, आगे जो हाल बकाया है ||
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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