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________________ ३२४ रामायण सब इच्छा पूर्ण हुई मेरी, और प्रतिज्ञा बनमाला की । और बीच मे जो कुछ विघ्न पड़ा, यह हुई समय की चालाकी || दोहा आपने निज कर्त्तव्य किया, हमें नहीं कुछ रोष । अनुचित जो इसमें हुआ, सब कर्मो का दोष || किन्तु घाव भर जाने पर, पीड़ा का नाम निशान नहीं । जब दिल मे प्र ेम उमड़ वे, फिर वहाँ विरोध का काम नहीं || यह सब दुनिया का चक्कर, एक व्यवहार मात्र से चलता है । व्यवहार का जो अपमान करे, वही अपने कर मलता है । कभी दृष्टि दोष से हितकारी भी, अरि नजर में पड़ता है । उल्टे का सीधा बन जाता, जब पुण्य सितार चढ़ता है || यह देवी बनमाला बैठी, राजन अपने सग ले जाओ । निर्भय हमने किया तुम्हें, कुछ भय न जरा मन में खावो || दोहा L ' तन मन प्रसन्न भूपाल का, सुनकर अमृत बैन | हाथ जोड़ कर नम्र हो, लगा रस तरह कहन || कृपा सिन्धु कृपा निधान अब, गृह को चल के पावन करें । इन शुष्क हृदयों के लिए आप, अमृत वर्षा का श्रावन करें | अष्टांग ज्योतिषी से चलकर, अब साहे को सुधवाना है । फिर लक्ष्मण जी संग, बनमाला का जल्दी विवाह रचना है || दोहा बिनती करके ले गया, राज महल में साथ 1 उत्सव नगरी मे हुआ, सभी नसावे माथ ॥ सेवा करी राम लक्ष्मण सीता की, और सम्मान दिया । रघुकुल दिनेश को सिंहासन पर बैठाकर प्रणाम किया ||
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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