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________________ २६८ रामायण AAAAAAAAMA छन्द (लक्ष्मण) अब नहीं समय विवाह का, बोले अनुज सुन लीजिये । परखेंगे वापिस न कर, जाने हमें अब दीजिये || हो विदा उज्जैन को, सेना ले सिंहोदर गया । धर्म के प्रताप से, नृप का उपद्रव टल गया ॥ राम लक्ष्मण भी विदा हो, ध्यान चलने में किया । विश्राम करते उस जगह, जहाँ पर कि थक जाती सिया || कल्याण भूप दोहा मलयाचल आगे बढ़े, जब श्रीराम नरेश । चलते हुवे आया वहाँ निर्जल नामा देश || तृषा सीता को लगी, लिया जरा विश्राम । पानी लाने के लिये, लक्ष्मण धाया ताम ॥ एक सरोवर जल भरा, देखा अधिक अनूप । जल क्रीडा करने वहाँ आया है एक भूप ॥ कुबेरपुर का अधिपति, कल्याण नाम सुकुमाल । देख सुमित्रानन्द को खुशी हुआ तत्काल । उसी समय कर प्रेमभाव, लक्ष्मण से हाथ मिलाया है || फिर करता अनुज विचार, लगे औरत दिल में मुस्काया है । कल्याण भूप ने लक्ष्मण जी का स्वागत किया प्रति भारा है || और दिया आमन्त्रण चलो महल, मुख से यूं वचन उचारा है ॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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