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________________ २६४ रामायण W - ~ ~ ~ ~ manom enna नार ने मुझसे कहा, जो कुछ मिले घर से ले आ। भय पिछाड़ी नार का, आगे भी डरता है जिया ॥ आपके दर्शन किये, आराम कुछ मुझको मिला। क्या करू जाऊ किधर, दोनों तरफ डरता दिला । दोहा पथिक के सुन कर वचन, यों बोले श्रीराम। रत्नमयी यह तागड़ी, ले जा कर निज काम ॥ लाखो का ले द्रव्य पथिक, चरणों में शीस मुकाता है। और हुआ बहुत प्रसन्न, धूल चरणों की मस्तक लाता है । रामचन्द्र कहे लक्ष्मण से, अय भ्रात जल्द पुर में जाओ। यह कष्ट पड़ा एक धर्मी पे, जल्दी से उसे हटा आओ। हाथ जोड़ कर नमस्कार, ले धनुष लखन उठ धाये हैं। कौन सिंह को रोक सके, चल वज्रकरण पे आये है । सेवा की अति लक्ष्मण की, सब भेद भूप ने पाया है। वन में बैठे सिया राम हाल, सब लक्ष्मण ने समझाया है। दोहा उसी समय श्री राम को, ले गये महल बुलाय । भोजन पानी सब तरह, मेवा करी चित्तलाय ।। भेजा लक्ष्मण राम ने, सिंहोदर के पास । • लक्ष्मण जा कहने लगा, जो मतलब था खास ॥ दोहा ( लक्ष्मण ) निष्कारण के क्रोध से, होते है अन्याय । - हर व्यक्ति को हर जगह, न्याय पंथ सुखदाय ॥ समझ लिया हमने सब कुछ, इसलिये तुम्हें समझाते हैं। मिल चुका दण्ड कर लो संधि, क्यो आगे राड़ बढ़ाते हो।।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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