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________________ वज्रकरण सिहोदर . - - . . गाना न० ४० (विद्युत अंग) जिनको जुत्तो के तले, पलकें बिछाते देखा 1 आज मुह देखते ही, नाक चढ़ाते देखा ॥१६ झूठे टुकड़ो से मेरे, पलता था कुनबा जिनका। सरे बाजार उन्हे, धमकी सुनाते देखा ॥२१॥ फखर जिनको था मेरे, चरण दबाने में कल । क्रोध से आज उन्हे' आखे दिखाते देखा ॥३॥ मेरे दर पर जो कुत्तो की, तरह फिरते थे कल । आज विपरीत उन्हे, दांत चबाते देखा ॥४॥ न प्रेम न धीरज न चो, बुद्धि आकार रहे । शुक्ल पैसे को सभी, नाच नचाते देखा ॥ दोहा (वेश्या) आभूषण बिन द्रव्य ही, तस्कर लावें लूट १ ऐसे भी न जिसे मिलें, तो किस्मत गई फूट ।। आज ही र.त अन्धेरी में, राजा के महल घुसो जाकर ५ रानी के कान पड़े कुण्डल, जल्दी लादो झटका लाकर ॥ ऐसा सुनकर आ घुसा महल, मे राजा रानी जाग रहे। सोचा छुप बैठू महलो मे, क्योंकि जल सभी चिराग रहे । जो एक पलक भी सो जावें, तो मुझे फिकर न एक रहे। विद्युत अंतर से छिपे हुवे, रानी के कुण्डल देख रहे । नींद न आती राजा को, मन मे रानी यो विचार रही। निश्चय करने को महारानी, चंपा यूवचन उचार रही।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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