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________________ वज्रकरण सिंहोदर २८६ २६--वज्रकरण सिंहोदर दोहा आगे फिर इक आगया, अवन्ती वरदेश । शुद्ध एक स्थान मे ठहरे रामनरेश । वटवृक्ष तले आसन लाये, जहाँ अति गहन शुभ छाया है। कुछ देख हाल उस जंगल का, मन ही मन ध्यान लगाया है ।। क्या बाग और उद्यान यह दोनो अद्भुत रंग दिखाते है। फूलो पर यौवन बरस रहा, पर मनुष्य नजर नहीं आते है । दोहा (राम) उज्जड़ अब ही का हुआ; अय लक्ष्मण यह देश । कोई मिले तो पूछिये, कारण कौन विशेष ।। थोड़ी देर के बाद, पथिक एक नजर सामने आया है। कुछ हाल पूछने लिये अनुज ने, अपने पास बुलाया है ।। बोले अहो पथिक बतलाओ, किस कारण उज्जड़ देश हुआ। सब आदि अन्त पर्यन्त कहो, तेरा भी क्यो दुर्भस हुआ । दोहा (पथिक) दारुण दुःख सुन लीजिये, पथिक कहे तत्काल । जिस कारण उज्जड़ हुआ, बतलाऊ सब हाल । उज्जयनी एक नगर मे, सिंहोदर राजान् । भूपति आचरण न गिरे, आज बड़ा वलवान् ॥ बज्रकर्ण एक और है दशांगपुर क्रा भूप । . ., सिंहोदर ने आनकर, घेरा नगर अनूप ॥. । दारुण
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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