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________________ भरत का राज्य २७३, छन्द मानना भाई भरत को, तात के मानिन्द सभी। . मेरा भी हृदय सर्द सुन सुन, करके होवेगा तभी ।। वचन यह कह कर चरण, श्री राम ने आगे धरा। सामन्त मन्त्री जन सभी के नेत्रो में अति जल भरा ॥ प्रेम हृदय मे भरा सब संग ही संग में चल रहे। ' विनती न मानी राम ने, सौ सौ खुशामद कर रहे ।। दोहा चलते चलते आ गई, नदी बह रहा नीर । फेर राम कहने लगे, बैठ नदि के तीर ।। गाना नं० ३४ । ( राम का मंत्रीगण एवं सामन्तगण को समझाना) बहुत आगये दूर मन्त्री, - लौट अवध जाओ ।।टे।। चापिस रथ ले जाओ मन्त्री, मत ना घबराओ । तुम समस्त राज परिवार को, जाकर धीरज बधाओ ।।१।। सामन्त होश कर मत रोवो, न नीर नैन लावो । चापिस तुम सब जाओ, अयोध्या हुक्म मेरा पाओ ।।२।। दोहा समझा कर यो राम जी, बढ़े नाव की ओर । निपाद राज अति खुश हुआ, जैसे चन्द्र चकोर ।। गाना नं. ३५ आन प्रभु ने दर्श दिखाये सफल कर्म मेरे, हां सफल कर्म मेरे। भिरन भिरन आ रही बेडी, गाय रही है महिमां तेरी।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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