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________________ रामायण .. , दोहा ( लक्ष्मण.) आप वनो मे भ्राता जी, यदि अकेले जाय । सेवा मै कुछ न करू तो मम मात लजाय । बोले राम अय भाई, जैसी तेरी भी इच्छा है। क्या समझावे और तुझे, खुद बन बैठा जब बच्चा है ।। - सीता लक्ष्मण की हुई, अर्ज सभी स्वीकार । अनुज भ्रात तब राम से, बोले वचन उचार ।। दोहा (लक्ष्ण ) क्यो भाई अब मौन हो, करते कौन विचार । सब कुछ निश्चय हो गया, खड़े सभी तैयार । मातृ भक्त श्री राम जी, भर लाये जल नैन । ' आहिस्ता से लखन को ऐसे वोले बैन । 'अय भाई लक्ष्मण सनो, खास मर्म की बात । । बिन माता के जगत में, ठोर नहीं दिखलात ।। पिता से ज्यादा मात की, औलाद होती है ऋणी । सिद्धान्त क्या प्रत्यक्ष अनुभव, पुरुषों से बातें सुनीं ।। माता का हृदय शांत बिन है, आत्मा मेरी दुःखी। दुःख दे माता को कभी मै, हो नहीं सकता सुखी ॥ माता के उपकारों का बदला, त्रिकाल दे सकता नहीं । निराश कर माता के दःख का, भार ले सकता नहीं। हो सकेगा जिस तरह, माता की आज्ञा पाऊगा । । शान्त हृदयं कर मात का, फिर आगे पाँव उठाऊंगा ।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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