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________________ २४२ रामायण यही वक्त है माता अब धैर्य धारण का । आराम नहीं चाहता हूँ, अब मै तन का ।। हे मात ख्याल एक सिर्फ पिता के ऋण का। मुझको नही बिल्कुल, साधन मे भय बन का ॥ है लिये धर्म के तुच्छ, मेरी जिन्द तिनका । फिर ध्यान कहां है, राज पाट और धन का ॥ मेरी मात ख्याल कहां गया तुम्हारा है। कर्तव्य पालन के लिये मात बनवास हमारा है ॥३॥ कौशल्या-हर बार कुमर दिल मेरा, मति दुखावे । पति धारे संयम और तू बन को जावे॥ मेरे पुत्र मै दिल कैसे, थामू कर ध्यान । तेरा, कहना सहज, कलेजे मेरे लगता बाण ॥ क्यों सहे अतुल दुःख बेटा, बालेपन में। तेरे बिन घोर अन्धेरा, हो महलन में ॥ ' . गया उछल कलेजा, रही न सत्या तन मे । न रुके बह रहा जल, भरना नयनन में । तोते चश्म मानिन्द मोह तजा तमाम । लगे कलेजे बाण, पुत्र मत ले जाने का नाम ||४|| दोहा ( राम ) माता छोटा देख कर, मन अपने मत भूल । छोटा बच्चा सिंह का, मारे गज स्थूल । राम-छोटा सा वज्र बड़े बड़े, पर्वत भी तोड़ गिराता है। अंकुश क्या देखो छोटासा, हस्ती को वश कर लाता है ।। अन्धकार का नाश करे दीपक, या रवि जरा सा है। मैं क्षत्राणी का शेर बबर, माता दिल धरो दिलासा है।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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