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________________ १६ ज्ञान हुआ। आप १६ वें तीर्थकर हुए । २५ हजार वर्ष तक दीक्षा पाली । अन्त मे सर्व कर्म क्षय करके ज्येष्ठ कृष्णा १३ को मोक्ष मे गये । श्री शांतिनाथ जी सोलहवें तीर्थकर के निर्वाणकाल के आधा पल्योपम का समय बीत जाने के पश्चात् गजपुर में सूर राजा और श्री नाम की रानी से वैशाख कृष्ण १४ को सतरहवे तीर्थकर श्री कुंथुनाथ का जन्म हुवा | आप इकहतर हजार दोसौ पचास वर्ष गृहस्थाश्रम मे रहे । पश्चात् गजपुर के उपवन मे चैत्र कृष्ण ५ को दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के १६ वर्ष बाद चैत्र शुक्ल ३ कां फेवल ज्ञान हुआ । २३ हजार सात सो पचास वर्ष तक दीक्षा पाली फिर वैशाख कृष्ण १ को मोक्ष प्राप्त किया। आप तीर्थकर पद से पहले ६ठ्ठे चक्रवर्ती थे । भारत वर्ष के सम्पूर्ण छ: खंडों का राज किया । १७ वे तीर्थंकर को निर्वाण पद प्राप्त किये जब एक करोड़ एक हजार वर्ष न्यून पाव पलोपम का समय बीत गया तब अगहन शुक्ल १० को गजपुरी मे राजा सुदर्शन की रानी देवी देवकी से १८ वे तीर्थंकर श्री अरहनाथ जी का जन्म हुआ। आप ६३ हजार वर्ष गृहस्थ मे रहे । सातवे चक्रवर्ती बनकर छ: खण्डो का राज किया । पश्चात् अगहन शुक्ल ११ को गजपुर के उपवन मे दीक्षा ली। दीक्षा के ३०० वर्ष पीछे कार्तिक शुक्ला १२ को केवल ज्ञान हुआ | इक्कीस हजार वर्ष तक चारित्र का पालन किया । अगहन शुक्ला १० को मोक्ष पधारे। इनके निर्वाण होने के पश्चात्
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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