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________________ भामण्डल का अपहरण बोले नये सेवक पकड़ो, यह भूत भाग न जाय कहीं । काला मुह इसका करके, दो चार लात दो ठोक यही ॥ छन्द कोलाहल भृत्यो का बढ़ा, सब महल गुंजार हुआ । शीघ्र ही अन्तःपुर पति, जांच को प्रस्तुत हुआ || आया है घटना स्थान पर, देखे तो क्या नारद मुनि । भय मान सब पीछे हटे, नीची करी सब ने ध्वनि ॥ कहने लगे सोचे बिना, आफत यह छेड़ी है तुम्हे । ऐसा न हो महा कष्ट कहीं जाकर के दिखला बाल ब्रह्मचारी महा गुणी, नारद मुनि शुभ तोड़ा फोड़ी कर तमाशा, देखना यह काम है || रवास आदि सब जगह, नहीं रोक इनको है कहीं । भाई भले के सर्वदा, बद से बदी छोड़ें नही ॥ दे हमे ॥ नाम है । दोहा नारद मन मे सोचता किया, मेरा अपमान | इसका फल दूरंगा इन्हे, सोचा लाकर ध्यान ॥ १६१ चित्र खींचकर सीता का, अब जल्ह वहां से धाये 1 वैताड़ गिरी 'रथनुपुर' जा, नारद ने जाल बिछाये है ॥ जब नजर पड़ी भामण्डल पर, नारद को आश्चर्य आया है। सीता की मानिन्द इस पर भी, क्या रूप रंग अति छाया है ।। भामण्डल ने देख मुनि, नारद को, शीश नमाया है । आशीर्वाद पा राजकुवर ने ऐसे वचन सुनाया है ॥ कहो मुनि महाराज किधर से आकर दर्श दिखाये है। सब तरह कहो शान्ति तो है, और कहां घूम कर आये है ||
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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