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________________ कैकेयी स्वयम्वर rrounnarwww कैकेयी स्वयम्वर दोहा कौतुक मंगल नगर में, शुभ मति है भूपाल ! पृथ्वी रानी की सुता कैकेयी रूप विशाल । द्रोणमेघ था पुत्र भूप के, शूर वीर अति बल धारी। रचा स्वयम्वर लड़की का, आडम्बर बहुत किया भारी ।। बड़े बड़े भूपति आये, स्वागत की आर्ती तार रहे। 'लगी खबर यह दशरथ को, मन मे यों सोच विचार रहे । गाना न० ५२ तर्ज-जमाना तेरी कैसी बिगड़ गई चाल रे] समय ने कैसा खाया है फेर कमाल रे ॥ टेर॥ सूर्य वंशी हुवे जगत् में सब ही गौरवशाली॥ हॉ-हाँ, भाग्य हीन मै आकर जम्मा गई वंश की जाली। बड़ो की रीत ना पाली, समय की चाल निराली। कैसा है हाल निढाल रे ॥१॥ संमति भूप ने कैकेयी का स्वयंवरा मंडप रचवाया । हाँ-हाँ । आज पुण्य मे कसर हमारे नौता'तक ना आया हमींको एक मुलाया, फेरिस्त मे नाम ना आया, हृदय मे शाले शाल रे ॥२॥ गौरव हीनो का दुनियां मे जीना ही मरना है ।। हॉ-हॉ॥ क्षत्रिय वीरो का तो दुनियां मे रण भूमि शरणा है। और फिर क्या करना है अवश्य एक दिन मरना है । हाँ-हॉ॥ रंक चाहे भूपाल रे ॥३॥ धर्म देश के लिये शुक्ल कुर्बान सभी करना है ॥ हाँ-हाँ। जावेंगे वहां अवश्यमेव अन्याय तोड़ धरना है . .
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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