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________________ सूर्यवंशावली १४३ अनंग कुसुमा शूर्पनखां की, पुत्री रूपवती प्यारी । वह हनुमान को परणाई, रावण ने समझा हितकारी॥ वानर पति ने निज पद्म, सुरागा पुत्री वज्रग को व्याही शूरवीर अति बली समझ, राजो ने पुत्रियां परणाई ॥ चौपाई आदर या हनुमत घर आया। मात पिता को शीश-नमाया ।। भोगे सुख पूर्ण संसारी । धर्म जिनेश्वर अति हितकारी ॥ जनक परिचय दोहा मथला नगरी अति भली, हरिवंशी राजान् । चासव केतु भूपति, विपला नार सुजान.॥ तेज बड़ा रवि तुल्य है, नाम जनक जग जोय । अजा पाले प्रेम से, पिता सरीखा होय । - सूर्यवंशावली दोहा जिस कुल मे पैदा हुवे, श्रीरामचन्द्रजी श्रान । हाल सुनो क्रम से सभी, हुए जो है राजान् ।। जम्बूद्वीप दक्षिणाधे, अयोध्यापुरी राजधानी थी। आदीश्वर आद्य नरेश, जिन्होने दया मुख्य मानी थी । सुनन्दा सुमंगला नृप के, दो सुन्दर रानी थी। - निन्यानवे पुत्र सुमंगला के, हुए-बड़ी जो पटरानी थी।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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