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________________ १२४ mmmmmmrammar रामायण अजना अरि होते है गम्भीर बड़े, नित्य निज कर्त्तव्य पर ध्यान धर। केतुमति कुल को कलङ्क तै लाया । अंजना कहिये कैसा। केतुमति कैसे ये उदर बढ़ाया । अंजना चाहिये जैसा । केतुमति अरि धिक्कार हजारोकार र धिकधिक शिक्षक गुरू कृत्य पर ॥ अंजना गुरू निन्दा सास न करना । केतुमति बकवाद न कर। अंजना कुवचन ना मेरे जरना । केतुमति अविनय से डर। अंजना गुरू निन्दक से ना डरूँ, धरूँ ठोकर सुरपति अज्ञानी पर। केतुमति बस, जबान को कुलूप लगावो । अंजना मै चोर नही।। केतुमति कुकर्त्तव्य पर पछतावो। अंजना पति बिन और नहीं। केतुमति माया चारन, व्यभिचारन, लानत है तेरी कुरीत पर । दोहा सास धीर मन मे धरो, सुनो लगा कर कान | गर्भ तुम्हारे पुत्र का, नहीं और का मान । नहीं और का मान अंगूठी, देख पास है मेरे। जिस दिन गये संग्राम, उसी दिन आये रात अंधेरे ।। या मंगवा ले पता वहां से, यदि न निश्चय तेरे । कटुक वचन ना बोल, ससु लगते हैं कांटे मेरे ॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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