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________________ रामायण सुमित्र ने झपट हाथ, पकडा कहे वे आई क्यों मरता है। मै समझा तू है श्रेष्ठ मित्र, तथा परीक्षा मेरी करता है ।। गाना नं० २४ (तर्ज-ऐ मनुष्य जन्म पाने वाले ) अनमोल मनुष्यतन पाया है तो उत्तम आप विचार करो। संसार समुद्र तरना है तो, श्रति सुमति एक तार करो॥ प्रथम तो सात कुव्यसन तजो, सभ्यता ग्रहो जिन राजभजो । संयमी जीवन का साज सजो, दुस्तर भवसिन्धु पार करो। वैभव कंकर के ढेरोपर, मत मन को ढेरी होने दो। यहां अन्त मे सभी निराश हुवे, कुछ आन्म का उद्धार करो॥३ मत विषम विषों को अपनाओ मोह म जाल बेमारी है। शुभ धर्म शुक्ल हो ध्यान सान से निज पर का सुधार करो ॥४ गौरव होनो का दुनियां मे जीने से अच्छा मरना है। निवृत्तिभाव से आनन्द है, कुछ नियम त्याग व्रतसार करो ॥५ दोहा उपादान कारण हुआ, सुमित्र का तैयार । निमित्त कारण उत्तम मिला, बना विरक्त संसार ।। सुमित्र ने सयंम लिया, पहुंचा कल्प इशान । हरिवाहन गृह सुत मधु, वही जन्मा मै आन ।। प्रभव मित्र संसार मे, कई बार देह धार । जन्मा ज्योतिर्मति के, पुण्यवान् सुकुमार ॥ सयंम ले न्यारणा करा, चमरेन्द्र बना जाय। मुझ को मित्र स्नेह से, त्रिशूल दई यह आय ॥ दो हजार योजन तक का, यह काम तुरत कर आती है। फिर आत्म रक्षक है मेरी, ना पास किसी के जाती है ।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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