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________________ سر आदिनाथजी के पुत्र भरतजी इस काल के प्रथम चक्रवर्ती हुए। भरत क्षेत्र के छः खण्डों का राज किया। इन्होने भी अपने पुत्र सूर्य कुमार को अपना उत्तराधिकारी बना के राज को छोड़ कर . __ केवल ज्ञान को प्राप्त किया और मोक्ष मे पहुचे। सूर्य कुमार से सूर्यवंश की स्थापना हुई और इस प्रकार तीसरे आरे मे एक तीर्थकर प्रथमावतार श्री आदि नाथ जी और एक चक्रवर्ती प्रथम भोगा वतार भरत हुए। ४ चौथा आरा दुखमा सुखमा कहलाता है । इस मे सुखकी अपेक्षा दु.ख अधिक होता है । इसका समय प्रमाण ४२ हजार वर्ष कम एक क्रोडाक्रोड सागर का होता है । इस आरे में २३ तीर्थकर धर्मावतार, ११ चक्रवर्ती भोगावतार, १ बलदेव, ६ वासुदेव, ६ प्रतिवासुदेव, यह २७ कर्मावतार हुए है और इनके समकालीन ६ नारद, २४ कामदेव अवतार ११ रुद्रावतार (क्ररकर्मी) होते है। __५ पांचवां आरा दुखमा कहलाता है, इस मे दुःख ही दुःख होता है । समय प्रमाण २१ हजार वर्प का होता है । इसको पचम काल और कलियुग भी कहते है । चौथे आरे के अन्तिम तीर्थकर धर्मावतार भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाण मोक्ष जाने के तीन वर्ष साढे आठ महीने पश्चात् पंचम आरा कलियुग लगा है और यह अवनति काल है । ६ छठा आरा दुखमा दुखमा कहलाता है। काल प्रमाण २१ हजार वर्प का होता है। इस आरे का प्रथम दिन लगते ही भरत क्षेत्र के वैताड पर्वत के आसपास क्षेत्र को छोड़कर अर्ध भरत से न्यून सर्व क्षेत्रो मे प्रलय होती है। २१ हजार वर्ष तक प्रलय रहती है। इस मे राजनीति धर्मनीति कुछ ___ नहीं होती है। वैताड पर्वत के आसपास भी प्राणी मात्र क
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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