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________________ रावण-वंश । जब देखा तेज मन्त्रियों ने, सब इन्द्र को समझाने लगे । कुछ सोच समझकर काम करो, सव द्रव्य काल बतलाने लगे ॥ दोहा सुर सुन्दर संग्राम मे, जिसने दिया हराय । लंका किष्किन्धा लई, शक्ति बड़ी कहाय ॥ . जिस कारण जा करे जग, वह काम नही अब बनना है । 'जलती ज्वाला बीच, पतंगो के समान जा जलना है || आपस मे सहमत होकर, अन्तिम यह सवने पास किया । सुर संगीत प्रान्त यम को देकर वही बात को दाव दिया || दोहा ॥ ऋक्ष नगर ऋक्ष राज को, किष्किन्धासुर राजा । 2 दे आधीन अपने किये, दिन दिन बढ़े समाज ॥ 1 फिर गायन रंग अति होने लगे, जय जय शब्द ध्वनि न्यारी । 4 चतुरंगी सेना सजी गगन मे, धूम विमानो की न्यारी ॥ लंका मे प्रवेश किया, दशकधर दान किया भारी । दई जागीर योद्धों को, घर घर मंगल गावे नारी ॥ ' दोहा ६५ t सूर रंज के शिरोमणि, इंन्दुमालिनी नार । बाली सुत' जिसके हुआ, शूर वीर बलधार ॥ पुनरपि सुत दूजा हुआ, सुग्रीव दिया तसु नाम । सुप्रभा हुई कन्या की, तीजे शुभ अभिराम ॥ ऋक्ष रज घर भामिनी, हरिकन्ता शुभ नाम । नील और नल सुत हुए, सुन्दर कला निधान || सुर रज ने किष्किन्धाका, बाली सुत को राज दिया । और मन्त्री पद पर योग्य समझ, सुग्रीव कुमर को नियत किया ||
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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