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________________ AAAMAN NARANAMANA. रावणका दिग्विजय। ~~mmmmmm ऐसा कह, अपना पुत्र रावणको सौंप उस चर्म शरीरी* सहस्रांशुने अपने पिताके पाससे दीक्षा ग्रहण कर ली। मित्रताके कारण उसने अपने दीक्षा ग्रहण करनेके समाचार अयोध्याके राजाके पास भी भेजे। अयोध्यापति अनरण्य विचारने लगा-मेरे और मेरे मित्रके आपसमें यह बात हुई थी कि हम दोनों एक ही साथ दीक्षा लेंगे । उसने दीक्षा ली मुझको भी अब वही मार्ग ग्रहण करना चाहिए।" अतः उस दृढ़ निश्चयीने भी अपने पुत्र दशरथको अयोध्याका राजा बना, दीक्षा लेली। . यज्ञोंमें पशु होमनेकी प्रवृत्ति कैसे हुई ? रावण, शतबाहु और सहस्रांशु मुनिको वंदनाकर, सह. स्रांशुके पुत्रको माहीष्मतीकी गद्दी पर बिठा; दिग्विजयकी यात्राके लिए आकाश मार्गसे रवाना हुआ। उसी समय लकड़ियोंकी मारसे जर्जरित बना हुआ नारद 'अन्याय ! अन्याय !' पुकारता हुआ रावणके पास आया और कहने लगाः - . "हे राजा ! राजपुर नगरमें 'मरुत' नामका राजा है । वह दुष्ट ब्राह्मणोंके सहवाससे मिथ्या दृष्टि होकर यज्ञ करता है । उस यज्ञमें होमनेके लिए ब्राह्मणोंने कई पशु बाँधकर मँगवाए हैं। उन निरपराधी पशुओंकी बिलबिलाहट मैंने सुनी। मुझको दया आई । मैं आकाशसे उतर * उसी भवमें मोक्ष जानेवाला; अंतिम शरीरवाला ।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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