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________________ रावणका दिग्विजय । २१ द्वितीय सर्ग। रावणका दिग्विजय । रावणका मंत्रसाधना। एक वार दशमुख अपने आँगनमें, अपने बन्धुओंसहित बैठा हुआ था। उन्होंने विमानमें बैठकर जाते हुए समृद्धिवान वैश्रवण राजाको देखा। रावणने अपनी मातासे पूछा:-" वह कौन है ? " माता कैकसीने उत्तर दिया:"वह मेरी बड़ी बहिन कौशिकीका पुत्र है। उसके पिताका नाम विश्रवा है; और सारे विद्याधरोंके अधीश्वर 'इन्द्र' का वह मुख्य सुभट है। इन्द्रने तेरे पितामहके ज्येष्ठ बंधु मालीको मारकर राक्षसद्वीपसहित लंकानगरी उसको दे दी है । हे वत्स ! उसी समयसे तेरे पिता लंकापुरीको वापिस लेनेकी अभिलाषा मनमें रखकर अबतक यहाँ ठहरे हुए हैं। ‘समर्थ शत्रुके लिए ऐसा ही करना उचित है।" राक्षसपति भीमेंद्रने शत्रुओंका प्रतिकार करनेके लिए, अपने पूर्वजोंके पुत्र मेघवाहनको-जो राक्षसवंशके मूल पुरुष हैंपाताल लंका, राक्षसी विद्या और लंका दी थी। तबहीसे तेरे पुरुषा उनपर राज्य करते आ रहे थे। शत्रुओंने तेरे पितामहके ज्येष्ठ भ्रातासे लंकाका राज्य छीन लिया । तबहीसे तेरे पिता और पितामह प्राणहीन जड़ पदार्थकी भाँति यहाँ रह रहे हैं। और साँढ़ जैसे रक्षक-हीन क्षेत्रमें
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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