SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 494
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रामका निर्वाण । annn एकवार मुनि राम छठे उपवासके अन्तमें पारणा करनैके लिए युगमात्र दृष्टि डालते हुए चार हाथ प्रमाण मात्र भूमिको देखते हुए - स्वंदनस्थल नामा नगरमें गये । चंद्रके समान नयनोत्सव रूप रामको पृथ्वीपर चलकर आते हुए देख, नगरवासी जन बड़े आनंदके साथ उनके सामने आये । नगरवासी स्त्रियाँ, रामको भिक्षा देनेके लिए नाना भाँतिके भोजनोंसे परिपूर्ण पात्र लेकर अपने घरके दरवाजोंपर खड़ी हो गई । उस समय नगरवासि - योंने इतना हर्ष - कोलाहल मचा दिया कि, जिससे हाथी अपने बंधनस्तंभ उखाड़ कर भागने लगे और घोड़े मंड़क कर, कनौती किये हुए बंधन तुड़ाने के लिए हृदने लगे । राम जिर्त धर्मवाला आहार लेनेवाले थे, इस लिए उन्होंने नगरवासी जो आहार देते थे वह न लेकर, राज्य हिलमें प्रवेश किया । वहाँ प्रतिनंदी राजाने उज्जित आहार द्वारा रामको प्रतिलाभा । रामने विधि पूर्वक आहार किया। देवताओंने वसुधारादि पाँच दिव्य किये। फिर जिस नसे राम आये थे उसीमें वापिस चले गये । मेरे जानेसे नगर में क्षोभ हो जाता है; लोगोंका संघट्ट हो जाता है इस लिए यदि मुझे इस वनमें ही भिक्षाके १ तजा हुआ; भिक्षुकोंको देनेके लिए निकाला हुआ; घरवालों के. जीम चुकनेपर बचा हुआ; आहार ।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy