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________________ राक्षसवंश और वानरवंशकी उत्पत्ति । Amrinju कैकसी परिवार सहित बहुत विस्मित हुई। उसने अपने पतिसे कहा:-" हे नाथ ! पहिले राक्षसोंके इन्द्रने जो हार तुम्हारे पुरुषा मेघवाहन राजाको दिया था; आपके पूर्वज आजतक जिस हारकी देवताकी भाँति पूजा करते आये हैं उस नौ माणिकके बने हुए हारको आजतक कोई धारण न कर सका था; और निधानकी भाँति एक हजार नागकुमार जिसकी रक्षा करते थे; उसी हारको आज तुम्हारे नवजात शिशुने खेंचकर अपने गलेमें पहिन लिया है।" शिशुका मुख उन नवों माणिकोंमें दिखाई दिया, इस लिए उसके पिता रत्नश्रवाने उसका नाम 'दशमुख' रक्खा और अपनी प्रियासे कहा:-" मेरे पिता सुमाली एक वार जब मेरुपर्वत पर चैत्यवंदन करने गये थे, तब उन्होंने एक मुनि महाराजसे प्रश्न पूछा था। चार ज्ञानके धारी मुनिमहाराजने उत्तर दिया था:-तुम्हारे पास परंपरासे जो नौ माणिकोंका हार चला आ रहा है। उसको जो पहिनेगा वह अर्द्धचक्री (प्रति वासुदेव ) होगा।" उसके बाद कैकसीने फिर गर्भधारण किया। गर्भधारण करते समय सूर्यका स्वप्न देखा; इस लिए जन्म हुआ तब बच्चेका नाम ' भानुकणे ' रक्खा; उसका दूसरा नाम ' कुंभकर्ण ' भी हुआ। उसके बाद कैकसीने एक "पुत्रीको जन्म दिया । उसके नख चंद्रके समान थे; इस
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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