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________________ ४१० जैन रामायण नवाँ सर्ग। wwimmmamimirmirmwmmmmwwwinnarurnmmmwww .warrorn nannu अपवाद मिटाया जा सकता था। रामने विद्वान होकर, न जाने ऐसा कार्य कैसे किया ?" लवणने पूछा:" वह अयोध्या यहाँसे कितनी दूर है ? कि जहाँपर हमारे पिता सपरिवार निवास करते है ?" __ नारदने उत्तर दियाः-" विश्वभरमें निर्मल चरित्रवाले तुम्हारे पिता राम जहाँ रहते हैं, वह अयोध्या यहाँसे एक. सौ साठ योजन दूर है।" · लवणने नम्रता पूर्वक वज्रजंघ राजासे कहा:--" हम वहाँ जाकर राम, लक्ष्मणको देखना चाहते हैं।" __ वज्रजंघने उनकी बात स्वीकार कर ली । वहाँसे अयोध्याको जाना निश्चित होगया, इस लिए पृथुराजाने अपनी कन्या कनकमालाका बड़े ठाटसे अंकुशके साथ ब्याह कर दिया। लवण और अंकुश वज्रजंघ और पृथु सहित वहाँसे रवाना हुए। मार्गमें कई देशोंको जीतते हुए वे लोकपुर नामा नगरके पास पहुँचे । वहाँ उस समय धैर्य और शौर्य से सुशोभित कुबेरकान्त नामा. अभिमानी राजा राज्य करता था। उन्होंने इसको रणभूमिमें जीत लिया। वहाँसे. चलकर, उन्होंने विजयस्थलीमें भ्रातृशत नामा राजाको जीता । वहाँसे गंगानदीको . पारकरके वे कैलाशपर्वतकी उत्तर दिशाकी ओर चले । उधर उन्होंने नंदन, चारू. सजाके देशोंको जीता। फिर रूष, कुंतल, कालांबु, नंदि
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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