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________________ सीताकी झुद्धि और व्रतग्रहण। ४०९ माला नामा कन्याका वर अंकुश ही होवे ऐसी इच्छा रखने चाले पृथुराजाने, सारे राजाओंके सामने, वज्रजंघसे संघी कर ली । राजा वज्रजंघ वहींपर, छावनी डालकर, कई दिनतक रहा। लवण और अंकुशका पृथ्वीपुरसे प्रस्थान। एक दिन वहाँ नारद मुनि आये । वज्रजंघ राजाने उनका भली प्रकारसे सत्कार किया। फिर उसने सारे राजाओंके सामने नारदको कहा:- “ हे मुनि ! यह पृथु राजा अंकुशको अपनी कन्या देना चाहते हैं। मगर इनके 'दिलमें लवण और अंकुशके कुलके विषयमें संदेह है, इस लिए इनका क्या कुल है, सो आप पृथुको सुनाइए; ताकी इनका संदेह मिट जाय और ये सन्तुष्ट हों।" नारद हँसे और बोले:-" इन कुमारोंके वंशको कौन नहीं जानता है ? जिस कुलकी उत्पत्तिके प्रथम अंकुर भगवान श्री ऋषभदेव हैं; जिसकुलमें कथाप्रसिद्ध भरवादि चक्रवर्ती राजा होगये हैं और इस समय जिस कुलके रामलक्ष्मण राज्य कर रहे हैं; . उस कुलको कौन नहीं जानता है ? ये कुमार जिस समय गर्भ में थे, उस समय अयोध्याके लोगोंने अपवाद लगाया था इसी लिए रामने भयभीत होकर, सीताका परित्याग कर दिया था।" अंकुशने हँसीके साथ कहा:- "हे महा मुनि ! रामने सीताको वनमें छोड़ा यह अच्छा नहीं किया, कई तरहसे
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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