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________________ ३६६ जैन रामायण आठवाँ सर्ग | आकाशमेंसे आनन्दित होकर, हर्षनाद किया- ' महासती 'सीताकी जय हो ' हर्षाश्रु जलसे सीताके चरणको धोते हुए लक्ष्मणने उनके चरणों में नमस्कार किया । सीताने लक्ष्मणका मस्तक सूँघा और आशीर्वाद दिया: – “ चिरजीवी होओ, चिरानंदी बनो और सदा विजयी रहो। " . फिर भामंडलने उनको नमस्कार किया । उसको भी उन्होंने मुनिवाक्यकी भाँति अनिष्फल आशीर्वाद देकर संतुष्ट किया | उसके बाद सुग्रीव, विभीषण अंगद आदि अपने नाम बता बताकर सीताको क्रमशः नमस्कार करने लगे । चिरकाल के बाद चंद्रप्रकाश पाकर विकसी हुई कमलिनीकी भाँति सीता रामके उत्संग में सुशोभित होने लगी । राम सीता सहित भुवनालंकार हाथीपर बैठ कर रावणके महलोंमें गये । सुग्रीवादि वानर वीर और विभीषणादि राक्षस वीर भी उनके हाथी के साथ ही थे । रामने हजारों I मणि स्तंभवाले श्री शांतिनाथ प्रभुके चैत्यमें, वंदना करनेकी इच्छासे, प्रवेश किया । विभीषणने पुष्पादि सामग्री दी | उससे रामने सीता और लक्ष्मण सहित भगवानकी पूजा की। रामका विभीषण को राज्य देना । विभीषण के प्रार्थना करनेपर राम, सीता लक्ष्मण और सुग्रीवादि वानर वीरों सहित विभीषणके घर गये । विभी 1
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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