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________________ सीताको रामचन्द्रका त्यागना। ३६५ Narromorrowrrn. हुआ। वहाँसे चक्कर तुम दोनों भाई रूपसे ही, महा विदेह क्षेत्रमें विबुध नगरमें राजाके घर जन्मे । वहाँसे दीक्षा ले, तपकर, मृत्यु पा, अच्युत · देवलोकमें गये। वहाँसे चवकर, प्रति वासुदेव रावणके तुम दोनों, इन्द्रजीत और मेघवाहन नामा दो पुत्र हुए हो । रतिवर्द्धनकी माता इन्दुमती भव भ्रमण करके, तुम दोनोंकी माता यह मंदोदरी हुई है ।" इस प्रकार वृत्तान्त सुनकर, कुंभकर्ण, इन्द्रजीत, मेघ-- वाहन और मंदोदरी आदिने व्रत ग्रहणकर लिया। सीता और रामका मिलन । तत्पश्चात रामने मुनिको नमस्कार कर, बड़ी धूमधामके साथ इन्द्रकी तरह लक्ष्मण और सुग्रीव सहित लंकामें प्रवेश किया। उस समय विभीषण छड़ीदारकी तरह आगे चलता हुआ रामको मार्ग दिखाता जा रहा था। विद्या-- धरियोंकी स्त्रियाँ रामकी मंगल-बंदना करती थीं। अनुक्रमप्ले. वे पुष्पगिरिके शिखरस्थ ‘उद्यानमें पहुँचे । वहाँपर रामने सीताको उसी स्थितिमें देखा, जिसका कि हनुमानने वर्णन किया था। उस समयमें ही रामने समझा कि उनका आत्मा अब-- तक जीवित है । रामने सीताको, अपने द्वितीयजीवनकी तरह, अपनी गोदमें बिठा लिया । देवताओं और गंधर्षोंने
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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