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________________ बाहिर बलके पर्वतरूप राम बीस योजन भूमिको अपनी विशाल सेनासे घेर, व्यूह रच, युद्ध के लिए तैयार होगये। रामकी सेनाका कोलाहल, समुद्र-ध्वनिकी तरह सारी लंकाको बहरी बनाने लगा। वह कोलाहल ऐसा मालूम होता था, मानो ब्रह्मांड फट गया है। __ असाधारण बलधारी प्रहस्तादि रावणके योद्धा, सेनापति जराबक्तर पहिन, हथियारोंसे सुसज्जित हो युद्ध के लिए तैयार हो गये । कोई हाथी पर बैठकर, कोई घोड़े पर बैठकर, कोई सिंहपर बैठकर, कोई गधे पर बैठकर, कोई रथमें सवार होकर, कोई कुबेरकी तरह मनुष्य पर चढ़कर, कोई अग्निकी तरह मेष पर चढ़कर, कोई यमराजकी भाँति महिषको वाइन बनाकर, कोई देवंत कुमारकी तरह अश्वारूढ होकर और कोई देवकी तरह विमानमें बैठ कर; ऐसे एक एक करके असंख्य रणपटु वीर रावणके पास आकर जमा होगये। रत्नश्रवाका ज्येष्ठ पुत्र रावण भी क्रोधसे लाल आँखें किये हुए, युद्धके लिए सज्ज होकर, विविध आयुधपूर्ण रथमें जा बैठा । द्वितीय यमके समान कुंभकरण हाथमें त्रिशूल लेकर, रावणके पास, पार्श्वरक्षक बन, आ उपस्थित हुआ। इंद्रजीत और मेघकुमार भी रावणके दोनों ओर आकर खड़े होगये; वे ऐसे मालूम होते थे, मानो रावणकी दोनों भुजाएँ हैं। उसके अन्य महापराक्रमी पुत्र, कोटिशः
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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