SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रावण वध । ३१९ यह देख कुंभकरण और इन्द्रजीतने बीचमें पड़कर उनको युद्ध करनेसे रोका। और जैसे महावत दो मस्त हाथियोंको उनके स्थानोंमें ले जाते हैं इसी तरह कुंभकरण और इन्द्रजीत उनको अपने अपने स्थानों में ले गये । जाते हुए रावणने कहाः " हे ! विभीषण तू लंका छोड़ कर चला जा; क्योंकि तू अनिकी भाँति अपने आश्रयका ही नाश करनेवाला है । " रावण के वचन सुनकर विभीषण तत्काल ही लंकाको छोड़कर रामके पास चल दिया । उसके पीछे अन्यान्य राक्षसोंकी और विद्याधरोंकी तीस अक्षौहिणी सेना भी रावणको छोड़कर विभीषण के पीछे रवाना हो गई । विभीषणको सेना सहित आते देखकर सुग्रीव आदि क्षोभ पाये | क्योंकि 1 " यथा तथा हि विश्वासः शाकिन्यामिव न द्विषि । ' ( डाकनकी तरह शत्रुओंपर भी तत्काल ही जैसे तैसे विश्वास नहीं हो जाता है ) । विभीषणने पहिले एक दूत भेजकर, रामको अपने आनेके समाचार कहलाये । रामने अपने विश्वासपात्र सुग्रीवके मुँहकी ओर देखा । सुग्रीवने कहा :- " हे देव ! यद्यपि सारे राक्षस जन्म मायावी और क्षुद्र प्रकृतिवाले होते हैं; तथापि विभीयहाँ आना चाहता है, तो भले आवे । हम गुप्त रीति से उसका शुभाशुभ भाव जानलेंगे और पीछे उसके भाव अनुसार योग्य प्रबंध करेंगे । "
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy