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________________ राक्षसवंश और वानरवंशकी उत्पत्ति । जा गिरा। मुनिने परलोक जानेमें 'पाथेय-मूंकडी-के समान नवकार मंत्र उसको दिया । नवकार मंत्रके प्रभावसे बंदर मरकर भुवनवासी देवलोकमें अब्धिकुमार (उदधिकुमार ) नामक देव हुआ । उत्पन्न होते ही अवधिज्ञानसे उसे अपना पूर्वभव मालूम हुआ । उसने तत्काल ही आकर मंत्रदाता मुनिकी चरणवंदना की। 'वन्दनीयः सतां साधुर्युपकारी विशेषतः।' ( साधु मुनिराज सज्जनोंके लिए सदावंदनीय हैं; उनमें भी उपकारी तो खास तरहसे वंदनीय ही हैं। ) इधर तडित्केशकी आज्ञासे उसके सुभट बंदरोंको मारने लगे । यह देख उस देवताको बहुत क्रोध आया । वह, विक्रियालब्धिसे बन्दरोंको बड़े बड़े रूप धारण करवा वृक्षों और शिला समूहोंके द्वारा, राक्षसोंको निहत करवाने लगा; सताने लगा। तडित्केश इसको देव-कृत उपद्रव समझ, वहाँ आया और पूना करके उसने पूछा कि-"तुम कौन हो? और किसलिए उपद्रव करते हो ?" पूजासे शान्त होकर अब्धिकुमारने पूर्व योनिमें अपने निहत होनेकी और नवकार मंत्रके प्रभावसे देवता होनेकी बात कह सुनाई । यह सुनकर लंकापति उस देवताके साथ मुनिराजके पास गया। तडित्केश और उक्त देवका पूर्वभव । तडित्केशने मुनिराजकी चरणवंदना कर पूछा:-"हे
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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