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________________ श्रीकंठको खेद हुआ। 'पूर्वजन्ममें मैंने अल्प तप किया था इसी लिए नंदीश्वरद्वीपमें जा शास्वत तीर्थंकरके दर्शन करनेका मेरा मनोरथ पूर्ण नहीं हुआ।' इस विचारसे निर्वेदी बन उसने वहीं दीक्षा ग्रहण कर ली, और कठोर तपस्या कर वह मोक्षको चला गया। श्रीकंठके बाद वज्रकंठ आदि अनेक राजा होगये। बादमें मुनिसुव्रत स्वामीके तीर्थमें वानरद्वीपमें घनोदधि नामका राजा हुआ। उस समय राक्षसद्वीपमें 'तडित्केश' नामक राजा राज्य करता था । उन दोनोंके बीचमें भी अच्छा स्नेह होगया था। ___ नवकारमंत्रके प्रभावसे एक बंदरका देवता होना। एकवार राक्षसद्वीपाधिपति तड़ित्केश अपनी रानियोंसहित 'नंदन' नामके सुंदर उद्यानमें क्रीड़ा करनेको गया । तड़ित्केश क्रीड़ा करनेमें निमग्न था; इतनेहीमें एक बंदरने वृक्षसे उतरकर उसकी 'श्रीचंद्रा' नामकी पट्टरानीके तनोंको. नखोंसे क्षत किया । यह देख तड़ित्केशको बहुत कोध आया, और अपने बालोंको पीछेकी ओर हटाते हुए उसने बंदरके एक बाण मारा। . 'असह्यो स्त्रीपराभवः' (प्राणियों के लिए अपनी स्त्रीका अनादर असह्य होता है।) बाणविद्ध बंदर, वहाँसे भागता हुआ, पासहीके उबानमें एक मुनि कायोत्सर्ग कर रहे थे, उनके चरणों में
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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