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________________ जैन रामायण ॥ . प्रथम सर्ग। - - राक्षसवंश और वानरवंशकी उत्पत्ति । वानरवंशकी उत्पत्ति। अंजनके समान कान्ति वाले, हरिवंशमें चंद्रमाके समान श्री मुनिसुव्रतस्वामी, अरिहंतके तीर्थमें बलदेव 'राम' (पद्म ) वासुदेव लक्ष्मण . ( नारायण) और प्रतिवासुदेव 'रावण' उत्पन्न हुए थे । उन्हींके चरित्रोंका अब वर्णन किया जायगा । जिस समय श्री ' अजितनाथ' प्रभु विचरते थे उस समय भरतक्षेत्रके राक्षसद्वीपकी 'लंका पुरीमें राक्षस वंशका अंकुरभूत-राक्षसवंशका आदिपुरुष“धनवाइन' नामका राजा हुआ था। वह सद्बुद्धि राजा अपने पुत्र 'महाराक्षस' को राज्य दे ' अजितनाथ । प्रभुसे दीक्षा ले, तपश्चरण कर मोक्षमें गया। 'महाराक्षस' भी अपने पुत्र ‘देवराक्षस' नामके पुत्रको राज्य सौंप, व्रत अंगीकार कर, पाल, मोक्षमें गया । इस तरह उत्तरोत्तर राक्षस
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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