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________________ राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास । १६५ . mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmms हृदयी राजाने कासगृहवासी मनुष्योंको-कैदियों को और शत्रुओंको भी छोड़ दिया। को वा न जीवति सुखं पुरुषोचम जन्मनि ।' (उत्तम पुरुषोंका जन्म होनेपर कौन सुखसे नहीं जीता है ?) .. उस समय प्रजा सहित केवल राजा ही उच्छास नहीं पाया था-प्रसन्न नहीं हुआ था बल्के देवी पृथ्वी भी उस समय उच्छास पाई थी-प्रसन्न हुई थी। राजाने रामजन्मके समय जैसा उत्सव किया था उससे भी अधिक उत्सव इस वार किया। हर्षे को नाम तृप्यति।' (हर्ष कौन तृप्त होता है ?) दशरथने उस पुत्रका नाम 'नारायण' रक्खा; मगर लोगोंमें वह ' लक्ष्मण के नामसे प्रख्यात हुआ। - पयपान करनेवाले दोनों शिशु क्रमशः पितांको, दाडी मुंछके केश खींचनेकी, सजा देने योग्य वयको प्राप्त हुए। धाय माताके द्वारा पाले हुए उन दोनों कुमारोंको, दास्थराजा अपने दूसरे दो भुजदंड हों ऐसे बार बार देखने लगा। स्पर्शसे मानो शरीरमें अमृत वर्षा करते हों वैसे, वे सभामें, सभास्थित लोगोंकी गोदोंमे, एकके बाद दूसरेकी गोद में, बार बार फिरने लगे।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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