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________________ १६४ .जैन रामायण चतुर्थ सर्ग । (लोकस्थिति है कि-पुत्र उत्पन्न होनेपर दिया हुआ दान अक्षय होता है।) उस समय लोगोंने इतना हर्ष किया कि, जिससे राजा की अपेक्षा भी उनकी प्रसन्नता विशेष ज्ञात हुई । नगरजन दूब, पुष्प, और फलादि युक्त मंगलमय पूर्ण पात्र राजाके दरिमें लाने लगे । नगरमें घर घर मधुर मंगल गान होने लगे; केसरके छिटकाव किये जानेलगे और दर्वाजोपर तोरण बाँधे जाने लगे। उस प्रभाविक पुत्रके प्रभावसे राजा दशरथके पास अनेक राजाओंकी तरफसे भी अचिंतित भेटें आने लगी। रोजा दशरथने पद्मा-लक्ष्मी के निवासस्थान पद्म-कमलरूप उस पुत्रका नाम 'पद्म' रक्खा । और लोगोंमें वह रामके नामसे प्रसिद्ध हुआ। . उसके बाद रानी सुमित्राने रात्रिके शेष भागमें, वसुदेवके जन्मको सूचित करनेवाले हाथी, सिंह, सूर्य, चंद्र, अग्नि, लक्ष्मी और समुद्र इन सातोंको स्वममें देखा। उस समय एक परमर्द्धिक देव देवलोकसे चवकर सुमित्रा देवीके उदस्में आया । समय होनेपर उसने वर्षाऋतुके मेघोंबादलों के समान वर्णवाले, संपूर्ण लक्षणोंके धारी एक जगन्मित्र पुत्ररत्नका प्रसव किया। उस समय दशरथ राजाने सारे नगरके श्रीमत् अर्हतके चैत्यों में स्नात्रपूर्वक अष्टप्रकारी पूजा एचवाई। हर्षोत्फुल्ल
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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