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________________ रावणका दिग्विजय । आये थे तो भी अहिल्याने तेरा त्याग कर, अपनी इच्छानुसार आनंदमालीसे ब्याह किया । तूने उसमें अपना अपमान समझा । इस लिए उसी दिनसे तू आनंदमालीसे द्वेष रखने लगा, कि मेरी उपस्थितिमें अहल्याने उसको कैसे वर लिया। __ कुछ काल बाद आनंदमालीको वैराग्य हो आया । उसने संसार छोड़कर दीक्षा लेली और तीव्र तपस्या करता हुआ, वह महर्षियोंके साथ विहार करने लगा। एक बार विहार करता हुआ वह 'रथावर्त' नामके गिरिपर गया और ध्यान करने लगा । वहाँ तूने उसको देखा ! तुझे अहल्याके स्वयंवरकी बात याद आई । इस लिए तूने उसको बाँधकर अनेक तरहके दुःख पहुँचाये । मगर वह पर्वतकी तरह अचल रहा । अपने ध्यानसे नहीं डिगा। 'कल्याणगुणधर' नामके साधुने, जो उसके गुरु भाई थे; जो साधुओंमें अग्रणी थे और जो उस समय उसके साथ ही थे, तेरी उस कृतिको देखा । तुझे निवृत्त करनेके लिए, वृक्षपर जैसे बिजली गिरती है, वैसे ही उन्होंने तुझ पर तेजोलेश्या रक्खी । तेरी पत्नी सत्यश्रीने, यह देखकर, भक्तिवचनसे मुनिको शांत किया; इसलिए उन्होंने तेजोलेश्याका वापिस हरण कर लिया और तू जलनेसे
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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