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________________ रावणका दिग्विजय । और उस संबंधके कारण तुम्हारी जो संधि होगी वह बहुत ही उत्तम होगी। पिताके ऐसे वचन सुन, इन्द्रको अत्यंत क्रोध आया। वह लाल आँखें करके बोला:-" हे पिता ! रावण वध्य है-मार डालने योग्य है । मैं अपनी कन्या उसको कैसे दूँ ? क्यों कि उसके साथ हमारा आधुनिक वैर नहीं है। वंशपरंपरागत वैर है । स्मरण कीजिए कि अपने पुरुषा विजयसिंहको उसीके पक्षके राजाने मार डाला था। उसके. पितामह मालीकी मैंने जैसी दशाी थी, वैसी ही दशामें उसकी भी करूँगा । रावण आया है, तो भले आवे । मेरे सामने वह क:पदार्थ है-तुच्छ है । आप स्नेह-वश होकर.. घबराइए नहीं । धैर्य धारण कीजिए । आपने कई वार अपने पुत्रके पराक्रमको देखा है । क्या आप मेरे पराक्रमको. नहीं जानते हैं ? " ___ इतनेहीमें खबर मिली कि, रावणने नगरको घेर लिया, है । थोड़ी ही देर बाद पराक्रमी रावणका भेजा हुआ एक दूत इन्द्रके पास गया । उस दूतने मधुर शब्दोंमें इन्द्रसे कहा:-" जो राजा भुजबलका और विद्याबलका गर्व करते थे, उन सबका गर्व खर्व हुआ है और उन्होंने भेट देकर रावणकी पूजा की है । रावणकी विस्मृतिसे और तुम्हारी सरलतासे आज तक तुम निश्चिंत अपना राज्य करते रहे होपरन्तु अब तुम्हारा भक्ति बतानेका समय आया है।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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