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________________ ९२ जैन रामायण द्वितीय सर्ग। अभी सुकेश राक्षसके वंशमें रावण नामक वीर उत्पन्न हुआ है । जो सवकी बहादुरीको हरण करनेवाला है । प्रतापमें सूर्यके समान है और सहस्रांशुके समान योद्धा ओंको भी अपने कबजेमें करनेवाला है । जिसने लीलामात्रहीमें अष्टापद-कैलाश-पर्वतको उठा लिया था, जिसने मरुत राजाका यज्ञभंग किया था और जंबूद्वीपके पति ‘यक्षसे भी जिसका मन क्षुब्ध नहीं हुआ था। धरणेन्द्रने जिसको, अर्हत प्रभुके सामने भुजवीणाके साथ गायन करता देख, संतुष्ट होकर, अमोघ शक्ति दी है । जो प्रभु, मंत्र तथा उत्साहसे अजीत है। जिसके दो भुजाओंके समान विभीषण और कुंभकर्ण नामक दो पराक्रमी भाई हैं। जिसने तेरे सेवक वैश्रवण और यमको लीलामात्रमें परास्त कर दिया था-हरा दिया था; वालीके भाई वानरपति सुग्रीवको जिसने अपने अधिकारमें कर लिया है । अग्निमय कोटसे घिरे हुए दुर्लध्यपुरमें जिसने आसानीसे प्रवेश किया है । और जिसके छोटे भाईने वहाँके राजा नलकूबरको क्रीडामात्रमें बाँध लिया है । ऐसा रावण राजा आज तेरे सामने आया है । प्रलयकालकी अग्निके समान उद्धत रावण-प्रणिपात-नम्रता स्वीकार-रूपी अमृतवृष्टिसे शान्त हो जायगा। इसके सिवाय वह शांत होनेका नहीं है। तू अपनी रूपवती कन्या ' रूपवतीका' रावणके साथ ब्याह कर दे । जिससे दोनोंका संबंध उत्तम जुड़ जायगा
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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