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________________ ७४ जैन रामायण द्वितीय सर्ग। wimmmmmmmmmmmmmmm अनुसार अर्थ करके बताया और कहा:-" हे सत्यवादी ! इनमेंसे सत्य अर्थ कौनसा है सो बताओ।" उस समय अन्यान्य वृद्ध विनोंने राजासे कहाः-"हे राजा ! यह विवाद तो तुम्हारे ही ऊपर है । पृथ्वी और आकाशके वीचमें जैसे सूर्य साक्षी है, वैसे ही इन दोनोंके बीचमें तुम साक्षी हो । घट आदि जो दश दिव्य हैं, वे सत्यके आधार रहे हुए हैं । सत्यसे मेघ बरसता है और. सत्यतासे ही देवता सिद्ध होते हैं । हे राजा! तुम्हीसे यह सारा लोक सत्यमें रहा हुआ है। इस लिए इस विषयमें तुमसे हम विशेष क्या कहें ? अतः जो बात तुम्हारे सत्यव्रतके योग्य हो वही कहो।" __ ऐसी बातें सुननेपर भी अपनी सत्य-वक्तापनकी प्रसिद्धिकी कुछ परवाह न कर, वसुराजाने कहा:-"गुरुने 'अज' शब्दका अर्थ बकरा बताया था ।" __वसु राजाके ऐसे असत्य वचन सुनकर, वहाँ रहे हुए देवता बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने कुपित होकर वसुकी, स्फटिकशिलाकी बनी हुई आसन वेदीको तोड़ डाला। तत्काल ही वसुराजा, नरकमें जानेको प्रस्थान करता हो ऐसे, भूमि पर जा गिरा । देवता विताडित वसुराजा मरकर घोर नरकमें गया। १-जल, अग्नि, घड़ा, कोष, विष, माया, चावल, फल, धर्म और पुत्रको स्पर्श करना । ये दस दिव्य कहलाते हैं।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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