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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०७ गतमाता--ममरतामरसे विततेक्षण ॥ २ ॥ परमतापदमानसनन्मनः--मियपदं भक्तो भवतोऽवतात् ॥ जिनपतेर्मतमस्तमगतत्रयी --परमतापदमानसजन्मनः ॥ ३॥ रसितमुच्चतुरं गमनाय कं । दिशतु कांचनकांतिरिताच्युता ॥ धृतधनुःफलकासिशरा करै-रसि. समुच्चतुरंगमनायकं ॥ ४ ॥ ॥ अथ श्रीधर्मनाथ जिनस्तुतिः॥ __ अनुष्टुपवृत्तम्. नमः श्रीधर्म निष्क--दयाय महिताय ते ॥ मामरेंद्रनागेंद्र-दयायमहितायते ॥ १ ॥ जीयाजिनौधो ध्वांतांतं । ततान लसमानया ।। भामंडलत्विषा यः स । ततानलसमानया ॥२॥ भारति द्राक जिनेंद्राणां । नवनौरक्षवारिके ॥ संसारांभोनिधावस्मा--नबनौ रक्ष सारिके ॥ ३॥ केंकिस्था का क्रियाच्छक्ति-- करा लाभानयाचिता।।प्राप्तिभूतनांभोज-करालामा नयाचिता॥४॥ ॥ अथ श्रीशांतिनाथ जिनस्तुतिः॥ शार्दूलविक्रीवितवृत्तम्. राजत्या नबपद्मरागविरैः पादैजिताष्टापदा-देऽकोप द्रुतभातरूपविभया तन्वाय धोर क्षमां । विभ्रत्याऽमरसेम्यया जिमपते श्रीशंतिनाथाऽस्मरो-द्रकोपद्रुत जातरूप विभयाऽतन्नाभयपी For Private And Personal Use Only
SR No.010287
Book TitleJain Prachin Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
PublisherUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
Publication Year1916
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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