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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Ach ૩૮૯ ॥ एकादशी स्तुति ॥ ॥शिखरिणी छन्दः॥ अरस्य प्रवज्या नमिजिन पतेर्जान मतुलं । तथा मल्लेर्जन्म व्रतमपमलं केवलमलम् ॥ वलक्षकादश्यां सहशिल सदुद्दाममहसि । क्षिती कल्याणानां क्षपतु विपदः पंचकमदा ॥ १ ॥ सुपर्बेन्द्र श्रेण्या गमन गमनैर्भुमिवलयं । सदा स्वर्गत्येवाहमह मिकया यत्र सलयं ।। जिनानामव्यापुः क्षणमति सुखं नारकसदक्षितौ ॥ २॥ जिना एवं यानि पणिजग दुरात्मीय समये । फलं यकतगामिति च विदितं शुद्ध समये ॥ अरिष्टारिष्टानां क्षितिरनुभवेयु बहुमुदः । सिता० ॥ ३ ॥ मुराः सेन्द्राः सर्वे सकलनिन चन्द्र प्रमुदिता । तथा च ज्योतिष्का खिलभुवन नाथा समुदिता ॥ तपो यत्करणा विदधति मुख विस्मृत हृदः ॥ क्षिती० ॥ ४ ॥ ॥ एकादशी स्तुति ॥ ॥ शार्दूलविक्रीडितम् ॥ श्रीभाग नेमिर्वभाषे जलशय सविधे स्फुतिमेकादशीयां । माधमोहावनिद्र प्रशमन विशिखः पंचबाणाचिरण: ॥ मिथ्यात्व. द्वान्त वान्ता रविकरनिफरस्तीत्र लोभाद्रि वनं । श्रेयस्तत्पर्य का स्ताच्छिव सुखमिति वा सुव्रत श्रेष्ठिनोऽभूत ॥१॥ इन्द्रैरभ्रभ्रमद्भिर्मुनि पगुणरसा स्वादनानन्द पूर्ण। दीव्यद्भिः स्फारहारै. ललित वर For Private And Personal Use Only
SR No.010287
Book TitleJain Prachin Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
PublisherUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
Publication Year1916
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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