________________
( ए) सार ॥ देव दाणव नरपति थई रे, जाशे मुक्ति मजार ॥ न ॥ लो० ॥ ६ ॥ जावसागर पंमित जणे रे, वीरसागरबुध शिष्य ॥ लोन तणे त्यागें करी रे, पहोंचे सयल जगीश ॥ न ॥ लो० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥अथ शीयलनी नववाड प्रारंजः ॥ ॥ दोहा ॥ श्रीगुरुने चरणे नमी, समरी शारद माय ॥ नवविध शीलनी वाडनो, नत्तम कदं नपाय ॥ १ ॥ ढाल पहेली ॥ वधावानी ॥ पहेलाने पासो होजी ॥ देशी ॥ पहेलीने वाडें होजी वीर जिनवरें कह्यो, सेवो सेवो हो वस्ति विचारीने जी ॥ स्त्री पशु पमंग होजी वासो वसे जिहां, तिहां न रहेवू हो शीलव्रत धारीने जी ॥ २ ॥ जिम तरूमालें होजी वसतो वानरो, मनमां बिये रखे नई पडं जी । मंजारी देखी होजी पिंजरमांहेथी, पोपट चिंते हों रखे मोटें चडूं जी ॥३॥ जिम सिंहलंकी होजी सुंदरी शिर धरी, जलनु बेडं हो जुगतिमु जालवे जी॥तिम मुनि मनमें होजी राखे जालवी, नारीने निरखी होजी चित्त नवि चालवे जी ॥ ४ ॥ जिहां होवे वासो होजी सेहेजें मंजारनो, जोखम लागे हो मुषकनी जातने जी ॥ तेम ब्रह्मचारी होजी नारी नी संगतें, हारे हो हारे रे शीयल सूधातने जी॥ ५॥ त्रुटक ॥ एम वाड विघटे विषय प्रगटे, शंका के खा नीपजे ॥ तीव्र कामें धातु बिगडे,रोग बहुविध न पजे॥मन्नमांहे विषय व्यापे, विषयगुं मन रहे मली।