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________________ (२७) पार न पा के ॥ ज०॥ ७ ॥ चूनडी जडामां देह अति दीपे, नवसरा हारें जग सा फीपे॥ ज० ॥ ॥ ७ ॥ नित नित मानी आरती उतारे, रोग शोग जय दूर निवारे ॥ ज० ॥ ए ॥ तस घर पुत्र पौत्रा दिक बाजे, मनवंडित सुख संपद गजे ॥ ज०॥ १० ॥ देवचं मुनि श्रारती गावे, जया जयो मंगल नित्य वधावे ॥ ज० ॥ ११ ॥ इति संपूर्ण ॥ ॥अथ लोननी सद्याय ॥ ॥ इमर अांबा अांबली रे ॥ ए देशी ।। ॥लोन न करीएं प्राणाया रे, लोन बुरो संसार । लोन समो जगमा नही रे, मुर्गतिनो दातार ॥ नविक जन, लोन बुरो रे संसार ॥१॥ करजो तुमें निरधार ॥ज ॥ जिम पामो नवपार ॥न ॥ लोन बूरो रे संसार ॥ ए आंकणी ॥ अति लोनें लखमी पति रे, सागरनामें शेठ । पूर पयोनिधिमां पड्यो रे, जई बेगे तस हेठ ॥ न । लो० ॥ ॥ सोवन मृगना लोनथी रे, दशरथ सुत श्रीराम ॥ सीता नारि गमावीने रे, जमीयो ठामो ठाम ॥ नम्।। ॥ लो० ॥ ३ ॥ दशमा गुणगा लगे रे, लोन तणुं ने जोर ॥ शिवपुर जातां जीवने रे, एहज मोहोटो चोर ॥ न ॥ लो० ॥ ४ ॥ कोध मान माया लोनथी रे, मुर्गति पामे जीव ॥ परवश प डीयो बापडो रे, अहोनिश पाडे रीव ॥न लो ॥ ५ ॥ परिग्रहना परिहारथी रे, नदी शिवसव
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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