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________________ (७२६) झानोपनोग्य तया देवोपनोग्य अने संघोपनोग्यने माटे सर्वसार सार वस्तु लेवी.तथा सर्व प्रकारनांधान्य अने सुवर्ण, रूप्य. मणि, आदिक इव्य, ढोकवां. मतिझान, श्रुतझान, अवज्ञान. मनःपर्यव झान अाराधनार्थ करेमिकास्मग्गं अन्नब॥कही पच्चीश लोगस्सनो कानस्सग्ग करतो ३७ श्रीमहावीर तपः-होतेर अईमासी, नव घनमासी, एक न मासी, त्रिमासी, वे अढिमासी, बवे मासी, वे दोढ मानी, वार एकमासी, न प्रति मा.दिन वे, महानप्रतिमा दिन चार, सर्वननरिमा दिन दश, एम नादि प्रतिमाना नपवास शोल तथा अनियह सहित पांच दिवसे कणी बमासी एक, व शेने गणत्रीश बह, बार अहम, ए रीतें श्रीमहावी रस्वामी बद्मस्थावस्थामां बार वर्ष ने साडा मास तप कयुं, तेमां पारणां ३४ए कस्यां, ते रीतें तप करी ने पनी उजमणे अष्टप्रकारी पूजा, गोधूम मण एक, घृतमण अडधो,तथा यथाशक्तं श्रीसंघर्नु वात्सल्य करवं. ३० गौतम पडघो तपः-पन्नर पूर्णिमा पर्यंत ए काशनादि तप यथाशक्तियें करवां. गौतम स्वामीने द्र धपाकनुं नैवेद्य धरवं. अष्टप्रकारी पूजा करवी. श्री गौतमजीनी प्रतिमाने अनावें श्रीमहावीर प्रतिमानी पूजा करवी. नद्यापनें रूपानो पडघो खीरें जरीने श्री गौतम अथवा वीरनी प्रतिमा आगल ढोकवो. श्रीगु रुने जोली अने पात्रां आपवां.
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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